कहानी पूर्वी चंपारण लोकसभा सीट की, राधामोहन ने लगातार बढ़ाया वोट प्रतिशत
कर्म जब प्रधान हो जाए तो ना उम्र की सीमा आड़े आती है। ना ही वक्त के साथ करवट लेनेवाली राजनीति और कूटनीति। इन सब पर भारी जन कसौटियों पर खरा उतने का संकल्प। जन कसौटी पर पूरी तरह कस चुके तन-मन की जीत हार भले वक्त तय करे, लेकिन उसका सफर जन मन आसान जरूर कर देता है।
कुछ ऐसी ही है कहानी पूर्वी चंपारण लोकसभा सीट की। देश की 18वीं लोकसभा के लिए हो रहे चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी व एनडीए के घटक दलों ने 400 पार का लक्ष्य निर्धारित किया तभी से प्रत्याशियों को लेकर कयास लगाए जाने लगे। इन सबके बीच केंद्रीय नेतृत्व के निर्णय ने तमाम कयासों पर विराम लगाते हुए पार्टी के कद्दावर नेता राधामोहन सिंह को ही फिर से अपना प्रत्याशी बनाकर सभी कयासों पर विराम लगा दिया।
राजनीति के जानकार बताते हैं- भाजपा की सधी राजनीति का संदेश है पूर्वी चंपारण लोकसभा सीट। वर्तमान राजनीति में जोखिम नाम की कोई चीज चुनावी रास्ते में नहीं रहे, इसका खास ध्यान रखा जाता है। चंपारण की राजनीति के साथ ही देश की राजनीति राधामोहन सिंह का नाम है। कारण यह कि वो एक ही सीट पर एक ही पार्टी के नेतृत्व में अबतक छह चुनाव जीत चुके हैं।
2009 से लगातार चुनाव जीते राधामोहन
2009 से लगातार तीन चुनाव जीते हैं। इससे पहले 1989 के लोकसभा चुनाव में पहली बार मोतिहारी सीट से पहली बार राधामोहन सिंह ने भाजपा के टिकट पर जीत हासिल की थी। इसके बाद 1991 में मध्यावधि चुनाव में सीपीआई के कमला मिश्र मधुकर से वो हारे। 1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पुनः राधामोहन सिंह को प्रत्याशी बनाया और चुनाव जीत गई।
1998 में उन्हें राजद की रमा देवी ने हराया, लेकिन एक साल बाद ही 1999 के मध्यावधि चुनाव में फिर भाजपा ने राधामोहन सिंह को प्रत्याशी बना जीत दर्ज की। वर्ष 2004 में राजद से अखिलेश प्रसाद सिंह ने राधामोहन सिंह को हराकर मोतिहारी लोकसभा सीट पर कब्जा कर लिया। 2008 में परीसीमन के बाद इस क्षेत्र का नाम मोतिहारी से पूर्वी चंपारण हो गया।
2009 में हुआ भाजपा की वापसी
2009 के चुनाव में फिर भाजपा की वापसी हुई और 42 प्रतिशत वोट हासिल कर 17 प्रतिशत के अंतर से राधामोहन सिंह चुनाव जीत गए। इसके बाद 2014 में भाजपा ने राधामोहन को ही मैदान में उतारा। उनका मुकाबला राजद के विनोद श्रीवास्तव से हुआ और 49 प्रतिशत मत लेकर 23 प्रतिशत के अंतर से फिर राधामोहन जीत गए।
राधामोहन ने लगातार बढ़ाया वोट प्रतिशत
2019 में भी भाजपा के प्रत्याशी राधामोहन सिंह रहे। उनके सामने महागठबंधन की ओर से बीएलएसपी के प्रत्याशी आकाश कुमार सिंह आए और राधामोहन सिंह 58 प्रतिशत वोट प्राप्त कर 30 प्रतिशत के अंतर से फिर जीत गए। पिछले तीन लोकसभा चुनावों की बात करें तो इन तीनों चुनावों में राधामोहन ने अपने वोट प्रतिशत को लगातार बढ़ाया।
यह उनकी उभरती छवि व जन विश्वास का नमूना रहा। नतीजा केंद्रीय नेतृत्व में जितने सर्वे कराए, उनमें पार्टी की छवि के साथ-साथ राधामोहन की छवि भी एक नायक के रूप में उभरी। यानी काम, संगठनात्मक क्षमता व चुनाव प्रबंधन के बीच जन मन को पढ़ने की क्षमता ने उम्र व स्वास्थ्य का हवाला देने के बाद भी राधामोहन को चुनावी मैदान में उतारा है। कारण यह कि यह एक ऐसा नाम है, जिसके साथ गठबंधन दलों के नेता भी सहमत रहते हैं।